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अंधारो / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
गांव रो जूना बड़लो
जोवै है बाट थारी
पूछै है स्हैर कानीं सूं
आवतै हर आपरै-परायै नैं
म्हारा बै लाल
आपरी आंख्यां मांय
सुपना सजा‘र गया हा
बेचग्या हा आपरी
पुरखां री पागड़ी
नूंवै चानणै खातर
अर छोडग्या
आपरै परिवार नैं
अंधारै मांय।
</poem>
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