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बळत / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
सूरज सूं
आंख्यां मिलावण री हिम्मत राखै
जणै चाल म्हारै सागै
तप्यां पछै ईज कुंदण बणीजै
आपरी ठौड़ पूगता लोगां सूं
बळण सूं कांई होवैला
भाग रो भरोसो करणिया
जिण ठौड़ हुवै
उण ठौड़ ईज रैवै
साच री लाठी
तलवारां अर तोपां सूं
हार नीं मानै
कांई हुयो
कुण खायग्यो थनैं?
</poem>
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