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तो सुण! / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
जे बगत री
आंख्यां मांय आंख्यां
नीं घाल सकै
नीं कर सकै
इण सूं दो-दो हाथ
तो सुण!
जींवतो होवण रो
भरम भी मत राखजै
क्यूंकै इण रो इलाज
हकीम लुकमान
कनै भी नीं हो।
</poem>
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