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सुपना / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
सुपना आवै
अर सौरम ज्यूं उड जावै
नीं ठाह कठै!
अर छोड जावै
आपना अैनाण
अबोलो ईज रैवणो पड़ै
थारी ओळूं गणमण करती रैवै
म्हारै सुपनां अर सैनाण रै बिचाळै।
</poem>
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