गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए / हस्तीमल 'हस्ती'
3 bytes added
,
09:45, 17 जून 2020
<poem>
लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए
सौ
आ़फतों
आफ़तों
का साथ है दिन-रात के लिए
अब है फ़जूल वक़्त कहाँ आदमी के पास
उसने उसे फिज़ूल समझकर उड़ा दिया
बरबाद
बर्बाद
हो चला हूँ मैं जिस बात के लिए
</poem>
Abhishek Amber
Mover, Reupload, Uploader
3,967
edits