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भूकंप, सूनामी विकिरण से घिरी हुई
एक छोटी-सी बच्ची अथाह मलबे में रास्ता बनाती चली जा रही है
वह सत्राह सत्रह अक्षरों से बने हुए एक हाइकू जैसी दिखती है
उजड़े हुए घरों के बीच एक अकेला आदमी साइकिल पर कहीं जा रहा है
एक शरणार्थी शिविर की सर्दी में एक वृद्ध चाय मिलने की उम्मीद में है
थर्राती हुई धरती की छाया प्रचण्ड पानी की छाया
ज़हरीली हवा की छाया
एक अवाक् हाइकू की तरह सत्राह सत्रह नाजुक अक्षरों की बनी हुई वह
चलती जाती है उस तरफ़
जहाँ बिछुड़े हुए लोग एक दूसरे को फिर से मिलने की बधाई दे रहे हैं
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