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<poem>
बेतरतीब उगी है झाड़ी
एक ओर से साफ करेंगे।
न भूलेंगे, ना माफ करेंगे।

जो कहलाती स्वर्ग धरा का,
वह घाटी संतप्त पड़ी है।
सुगंध लुप्त हुआ केसर का
बारूद की गंध भरी है।

कातिल धर्मान्धों को क्यों
मासूम बताया जाता है!
देश को खंडित करने का
षड्यंत्र रचाया जाता है।
क्यों अक्षम्य अत्याचारों को
क्षमा भला हम आप करेंगे?
न भूलेंगे, ना माफ़ करेंगे।

कहाँ गए कश्मीरी पंडित,
कहाँ गया केसरिया चंदन!
लहू बहा निर्दोषों का, क्यों
हुआ था सामूहिक विस्थापन!

डल झील का मस्त सिकारा
और वैष्णवी गुफा निराली।
अमरनाथजी के दर्शन पर
जिसने काली छाया डाली,
पुण्य धरा के उस दोषी का
समयोचित इंसाफ करेंगे।
न भूलेंगे, ना माफ करेंगे।


कैसे पनपा अलगाववाद
अखण्ड भारत की धरती पर!
सरकारें क्यों दोष हैं मढ़ती
पूर्ववर्ती, परवर्ती पर!

क्यों उस नाग को पालें हम
जिससे जहरीला पानी है!
क्यों वह भारत का अन्न खाय
जो मन से पाकिस्तानी है!
भय होगा तो प्रीत भी होगी
सब जय हिंद का जाप करेंगे।
न भूलेंगे, ना माफ करेंगे।

काल विवश कायर ने मारा
था निःशस्त्र जवानों को,
परन्तु भारत कब भूला है
वीरों के बलिदानों को!

दुश्मन नापाक, समझता है
पीतल-बारूद की भाषा बस।
हमने इसीलिए बदली
प्रत्युत्तर की परिभाषा बस।
जब गरजेगा भारत शत्रु तब,
शान्ति! शान्ति! आलाप करेंगे।
न भूलेंगे, ना माफ करेंगे।
</poem>
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