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<poem>
बात-बात में रार बहुत है।
तुम कहते हो प्यार बहुत है।

करनी हों जब प्यार की बातें
तब तुमको इनकार बहुत है।

अपनों से नफरत करते हो
दुश्मन से इकरार बहुत है।

लाख उधर से घुसते हों पर
इधर से गिनती चार बहुत है।

रेंग रहा घुटनों के बल
आतंकवाद लाचार बहुत है।

देश की रक्षा जो करता है
उस खंजर में धार बहुत है।

चाँद अकेला है 'विकास' , पर
तारों की भरमार बहुत है।
</poem>
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