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झूठ पाखण्ड की भर रहीं झोलियाँ।
धर्म प्रह्लाद के नाम पर राख़ राख ही-
बच रही जब जलायी गयीं होलियाँ।
सीढ़ियाँ बन गयीं गालियाँ-गोलियाँ।
कुर्सियाँ दुल्हनें कुछ करें भी तो' क्या,
जब लुटेरों के कंधे चढ़ीं डोलियाँ।
देख सम्बंध पावन अपावन हुए,
काँप थर-थर रहीं राखियाँ-रोलियाँ।
आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
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