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माँगना / मंगलेश डबराल

No change in size, 09:06, 20 जून 2020
उतना ही तुम मनुष्य बन सकोगे
किताबों ने कहा हमें पढ़ो
ताकि तुम्हारे भीतर ची़जों चीज़ों को बदलने की बेचैनी पैदा हो सके
कुछ अजीबो़गरीब अजीबोग़रीब है जीवन का हाल
वह अब भी जगह-जगह भटकता है और दस्तक देता है
माँगता रहता है अपने लिए
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