भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह }} हाथी की नंगी पीठ पर घुमाया ग...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
हाथी की नंगी पीठ पर
घुमाया गया दाराशिकोह को गली-गली
और दिल्ली चुप रही
लोहू की नदी में खड़ा
मुस्कुराता रहा नादिर शाह
और दिल्ली चुप रही
लाल किले के सामने
बन्दा बैरागी के मुँह में डाला गया
ताजा लहू से लबरेज अपने बेटे का कलेजा
और दिल्ली चुप रही
गिरफ्तार कर लिया गया
बहादुरशाह जफर को
और दिल्ली चुप रही
दफा हो गए मीर गालिब
और दिल्ली चुप रही
दिल्लियाँ
चुप रहने के लिए ही होती हैं हमेशा
उनके एकान्त में
कहीं कोई नहीं होता
कुछ भी नहीं होता कभी भी शायद
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
हाथी की नंगी पीठ पर
घुमाया गया दाराशिकोह को गली-गली
और दिल्ली चुप रही
लोहू की नदी में खड़ा
मुस्कुराता रहा नादिर शाह
और दिल्ली चुप रही
लाल किले के सामने
बन्दा बैरागी के मुँह में डाला गया
ताजा लहू से लबरेज अपने बेटे का कलेजा
और दिल्ली चुप रही
गिरफ्तार कर लिया गया
बहादुरशाह जफर को
और दिल्ली चुप रही
दफा हो गए मीर गालिब
और दिल्ली चुप रही
दिल्लियाँ
चुप रहने के लिए ही होती हैं हमेशा
उनके एकान्त में
कहीं कोई नहीं होता
कुछ भी नहीं होता कभी भी शायद
Anonymous user