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|रचनाकार=सर्वत एम जमाल |अनुवादक=|संग्रह=
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<poem>
बात बड़ी है लगती छोटी
ईमां ईमां , रोटी रोटी
जीवन का ये अर्थ नहीं है
शायद सूरज उग आएगा
सुर्ख सुर्ख़ हुई है पेड़ की चोटी
उसको देखो तब समझोगे
आँखों पे पट्टी चढ़ती है
अक्ल अक़्ल कहाँ होती है मोटी
अब वो भी ताने देते हैं
जिनको दे दी बोटी -बोटी
जीवन की शतरंज पे सर्वत
तूं तू क्या, सब के सब हैं गोटी</poem>
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