भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उषा की लाली में
अभी से गए निखर
हिमगिरि के कनक शिखर !
आगे बढ़ा शिशु रवि
डर था, प्रतिपल
अपरूप यह जादुई आभा
जाए ना बिखर, जाए ना बिखर, ...
उषा की लाली में
भले हो उठे थे निखर
हिमगिरी हिमगिरि के कनक शिखर!
</poem>
356
edits