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|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|
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<poem>
मैं निरंतर-अथक लिखती रही,
यह कौन और क्यों मानेगा?
जब उसने मुझे पहली बार देखा,
उस आकर्षण को शब्दों में न ढाल सकी।
जब मैं उससे दूर जा रही थी,
रो भी न सका, न मुझे रोक सका,
उसकी आँखों की पीड़ा और विषाद को,
सब पढ़ा तो, किन्तु शब्दों में न ढाल सकी।
व्यग्र लेखनी अब भी जागती है,
रातों को उनींदी हो, ऊँघती है,
शब्दों के लिए पुस्तकों के बीहड़ में भटकती है,
क्षमा ! उन आँखों की भाषा शब्दों में न ढाल सकी।
<poem>
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मैं निरंतर-अथक लिखती रही,
यह कौन और क्यों मानेगा?
जब उसने मुझे पहली बार देखा,
उस आकर्षण को शब्दों में न ढाल सकी।
जब मैं उससे दूर जा रही थी,
रो भी न सका, न मुझे रोक सका,
उसकी आँखों की पीड़ा और विषाद को,
सब पढ़ा तो, किन्तु शब्दों में न ढाल सकी।
व्यग्र लेखनी अब भी जागती है,
रातों को उनींदी हो, ऊँघती है,
शब्दों के लिए पुस्तकों के बीहड़ में भटकती है,
क्षमा ! उन आँखों की भाषा शब्दों में न ढाल सकी।
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