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Kavita Kosh से
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद प्रमाद —
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।