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|संग्रह=कुछ लम्बी कविताएँ / धर्मवीर भारती
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[भारत के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास का सबसे पहला और सबसे बड़ा हादसा था-अक्तूबर 1962 में चीन का आक्रमण। उसने न केवल सारे देश को हतप्रभ कर दिया था, हमारी दु:खद पराजय ने अब तक पाले हुए सारे सपनों के मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर दिया था और मानो एक ही चोट में नेहरू युग की सारी विसंगतियाँ उजागर हो गयी थीं और खुद नेहरू, जिन्हें सारा देश प्यार करता था, पक्षाघात से पीड़ित पड़े थे। विचित्र यह था कि इस भयानक शून्य को किन्हीं नये मूल्यों से या आदर्शों से भरने की चिन्ता करने के बजाय चिन्ता थी ‘नेहरू के बाद कौन?’ और सिसायत के खेल खेले जाने लगे थे। उस सारी भयावह परिस्थितियों में उभरा था यह बिंब-सन् ’63 में। कई महीनों के दौरान लिखी गयी थी यह कविता-‘पुराना क़िला’।]
[भारत के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास का सबसे पहला और सबसे बड़ा हादसा था-अक्तूबर 1962 में चीन का आक्रमण। उसने न केवल सारे देश को हतप्रभ कर दिया थाखा...मो..श !बोलो मत...एक भी आवाज़, हमारी दु:खद पराजय ने अब तक पाले हुए सारे सपनों के मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर दिया था और मानो एक ही चोट में नेहरू युग भी सवाल, लबों की सारी विसंगतियाँ उजागर हो गयी थीं और खुद नेहरूहल्की-सी जुम्बिश भी नहीं नहीं, जिन्हें सारा देश प्यार करता था, पक्षाघात से पीड़ित पड़े थे।विचित्र यह था कि इस भयानक शून्य को किन्हीं नये मूल्यों से या आदर्शों से भरने की चिन्ता करने के बजाय चिन्ता थी ‘नेहरू एक हल्की-सी दबी हुई सिसकी भी नहीं !हर दीवार के बाद कौन?’ कान हैंऔर सिसायत दीवार के खेल खेले जाने लगे थे।इस पार का हर कानउस सारी भयावह परिस्थितियों में उभरा था यह बिंब-सन् ’63 में। कई महीनों दीवार के दौरान लिखी गयी थी यह कविता-‘पुराना क़िला’।]उस पार चुगलखोर मुँह बन जाता हैजहाँ शहंशाहहकीमों, नजूमियों, खोजों और नक्शानवीसों से घिरेअपनी ज़िंदगी की आख़िरी रात गुजार रहे हैं !
ख़बरदार !
हिलो मत !
सजदे में झुकने वाला हर धड़ दुआ माँगते हुए
सिर से अलग कर दिया जाएगा
शहंशाह को भरोसा नहीं कि कौन दुआ माँगने वाला
अपने लबादे में खंजर छुपा कर लाया हो !
किले के बाहर रौंदी हुई फसलें, बिछी हुई लाशें, जले हुए गाँव, भुखमरे लोग :
क्या तुम्हारी दुआ उन्हें लगी जो शहंशाह को लगेगी ?
खा...मो..श !<br>बोलो मत...<br>एक भी आवाज़, एक भी सवाल, लबों की हल्की-सी जुम्बिश भी नहीं नहीं, <br>एक हल्की-सी दबी हुई सिसकी भी नहीं !<br>हर दीवार मौत किले के कान हैं<br>आँगन में आ चुकी हैऔर दीवार शहंशाह के इस पार का हर कान<br>नक्शानवीस अभी तजवीजें पेश कर रहे हैंदीवार के उस पार चुगलखोर मुँह बन जाता है<br>कि किले की दीवारें ऊँची कर दी जाएँजहाँ शहंशाह<br>खाइयों में खौलता पानी दौडा दिया जाएहकीमोंफाटकों पर जहर-बुझे नेजे जड़ दिये जाएँअँधेरा, नजूमियों, खोजों और नक्शानवीसों से घिरे<br>अपनी ज़िंदगी की आख़िरी रात गुजार रहे हैं !<br><br>बिल्कुल अँधेरा कर दिया जाए
ख़बरदार अँधेरा घुप !<br>हिलो मत !<br>कौन है जो चादर, अगरबत्ती, बेले के फूल और चिराग लाया हैसजदे में झुकने वाला हर धड़ दुआ माँगते हुए<br>साजिश ! खतरा ! दौड़ो दौड़ो अलमबरदारोसिर खंजर से अलग टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा<br>दो ये चादर, ये गजरे, ये चिरागशहंशाह को भरोसा नहीं मान लिया कि कौन दुआ माँगने वाला<br>अपने लबादे में खंजर छुपा कर लाया हो !<br>किले इस अभागिन के बाहर रौंदी हुई फसलेंबाप, बिछी हुई लाशेंभाई, जले हुए गाँव, भुखमरे लोग :<br>प्रेमी और बेटेक्या तुम्हारी दुआ उन्हें लगी जो शहंशाह की खामख्याली से ऊबड़खाबड़ घाटियों में जाकर खेत रहेपर इसे क्या हक है कि यहउनके मजार पर इस अँधेरी रात चिराग रक्खेउस टिमटिमाती रोशनी में मौत को लगेगी शहंशाह के कमरे तक जाती हुई पगडंडी दीख गयी तो ?<br><br>
मौत किले के आँगन में आ चुकी है<br>न एक चिरागऔर शहंशाह के नक्शानवीस अभी तजवीजें पेश कर रहे हैं<br>न एक जुम्बिशकि किले की दीवारें ऊँची कर दी जाएँ<br>खाइयों में खौलता पानी दौडा दिया जाए<br>फाटकों पर जहर-बुझे नेजे जड़ दिये जाएँ<br>अँधेरा, बिल्कुल अँधेरा कर दिया जाए<br><br>न एक आवाज़
अँधेरा घुप ख़ा मो श !<br>कौन है जो चादर, अगरबत्ती, बेले के फूल और चिराग लाया है<br>अँधेरे में मुट्ठियाँ कसेसाजिश ! खतरा ! दौड़ो दौड़ो अलमबरदारो<br>खंजर से टुकड़े-टुकड़े कर दो ये चादर, ये गजरे, ये चिराग<br>मान लिया कि इस अभागिन होठ भींचे एक शब्द के बाप, भाई, प्रेमी और बेटे<br>शहंशाह की खामख्याली से ऊबड़खाबड़ घाटियों में जाकर खेत रहे<br>पर इसे क्या हक लिए छटपटाता है कि यह<br>...उनके मजार पर इस अँधेरी रात चिराग रक्खे<br>उस टिमटिमाती रोशनी में मौत को<br>शहंशाह के कमरे तक जाती हुई पगडंडी दीख गयी तो ?<br><br>ख़ ब र दा र...
न एक चिराग<br>बा अदब...न एक जुम्बिश<br>बा मुलाहिजा...न एक आवाज़<br><br>रास्ता छोड़ोपीछे हटोजानते नहीं कौन जा रहे हैं ?हँसो मत बेअदब !दु:ख की घड़ी हैदीवाने-खास के खासुलखास विदूषक कतार बाँधे अपने गाँव लौट रहे हैं।ये हैं जिन्होंने दरबार को हर संकट में राहत दीकत्लगाह में लुढ़कते हर विद्रोही सिर कोइन्होंने गेंद की तरह उछाल कर दरबार को हँसायारियाया के आँसुओं से अभिनन्दन पिरोयेखिंची हुई खालों को ढोलक पर मढ़कर तुकबन्दियाँ बजायीं
ख़ा मो श अगर मरते वक्त भी ये जहाँपनाह से शिरोपेच और अपनी दक्षिणा लेने गयेतो इन पर खीजो मत-तरस खाओ !<br>कौन है जो अँधेरे में मुट्ठियाँ कसे<br>तुम्हें क्या मालूम कि ये बरसों पहले अपने कुटुम्बियोंहोठ भींचे एक शब्द के लिए छटपटाता है...<br>पड़ोसियों और गाँववालों की फरियाद लेकर आये थेख़ ब र दा र...<br><br>जहाँपनाह को असलियत बताने !
बा अदब...<br>बा मुलाहिजा...<br>रास्ता छोड़ो<br>पीछे हटो<br>जानते नहीं कौन जा रहे हैं ?<br>हँसो मत बेअदब !<br>दु:ख इनके भयभीत देहातीपन ने जहाँपनाह की दिलबस्तगी की घड़ी है<br>दीवाने-खास के खासुलखास विदूषक कतार बाँधे अपने गाँव लौट और तब से ये भयभीत बने रहे हैं।<br>ये हैं जिन्होंने दरबार को हर संकट में राहत दी<br>कत्लगाह में लुढ़कते हर विद्रोही सिर को<br>इन्होंने गेंद दिलबस्तगी की तरह उछाल कर दरबार को हँसाया<br>रियाया के आँसुओं से अभिनन्दन पिरोये<br>खिंची हुई खालों को ढोलक पर मढ़कर तुकबन्दियाँ बजायीं<br><br>खातिर
अगर मरते वक्त भी ये जहाँपनाह से शिरोपेच हँसो मतइनके जरीदार दुपट्टों और अपनी दक्षिणा लेने गये<br>तो इन बड़ी पागों पर खीजो मत-तरस खाओ !<br>तुम्हें क्या मालूम कि ये बरसों पहले अपने कुटुम्बियों<br>बड़े लोग हैं-पड़ोसियों और गाँववालों की फरियाद छोटा-सा मुँह लेकर आये थे<br>जहाँपनाह अपने गाँवों को असलियत बताने !<br><br>लौटते हुए
इनसे इनके भयभीत देहातीपन ने जहाँपनाह की दिलबस्तगी की<br>कुटुम्बी, पड़ोसी, गाँववाले पूछेंगेऔर तब से कि क्या तुमने शहंशाह को असलियत बतायीतो ये भयभीत बने रहे दिलबस्तगी की खातिर<br><br>किसमें मुँह छिपायेंगे बिना इन पागों और जरीदार दुपट्टों केपीछे हटो नामसझोकौन बेदर्द है जोमखौल में इनके दुपट्टे खींचता है, पगड़ी उछालता है !
हँसो मत<br>बा...अदबइनके जरीदार दुपट्टों और बड़ी पागों पर बा...मुलाहिजा !<br>ये बड़े लोग हैं-<br>छोटा-सा मुँह लेकर अपने गाँवों को लौटते हुए<br><br>
इनसे इनके कुटुम्बीएक धुपधुपाती हुई बेडौल मोमबत्तीखुफिया सुरंगों, पड़ोसीजमीदोज तहखानों, गाँववाले पूछेंगे<br>कि क्या तुमने शहंशाह को असलियत बतायी<br>तो ये किसमें मुँह छिपायेंगे बिना इन पागों चोर-दरवाजों और जरीदार दुपट्टों के<br>पीछे हटो नामसझो<br>कौन बेदर्द टेढ़े-मेढ़े जीनों पर घुमायी जा रही है जो<br>मखौल में इनके दुपट्टे खींचता है, पगड़ी उछालता है !<br><br>दीवारों पर खुदे ये किसके पुराने नाम फिर से दर्ज किये जा रहे हैं ?
बा...अदब<br>ये उन अमीर उमरावों के नाम हैं जिन्होंने कभीबा...मुलाहिजा मुहरें और पुखराजबच्चों के मुँह से छीने हुए कौरनीलम और हीरेऔरतों के बदन से खसोटे हुए जेवरचमड़े की मुहरबन्द थैलियों में भर करशहंशाह को पेशेनजर किये थे !<br><br>
एक धुपधुपाती हुई बेडौल मोमबत्ती<br>उनसे किले की दीवारें मजबूत की गयींखुफिया सुरंगों, जमीदोज तहखानों, चोर-दरवाजों और टेढ़े-मेढ़े जीनों उनसे बेगमात के लिए बिल्लौरी हौज बनेउनसे दीवानखानों के लिए फानूस ढलवाये गयेउनसे मरमरी फर्शों पर घुमायी इत्र का छिड़काव हुआउनसे इन्साफ के घंटे के लिए ठोस सोने की जंजीर ढलवायी गयीऔर अब उन तमान बदनीयत अमीर उमरा के नामकत्ल का परवाना भेजा जा रही रहा है<br>दीवारों ताकि खुदा के सामने पेशी के वक्तपाक नीयत शहंशाह के जमीर पर खुदे ये किसके पुराने नाम फिर से दर्ज किये जा रहे हैं ?<br><br>कोई दाग न छूट जाए
ये उन अमीर उमरावों के नाम हैं जिन्होंने कभी<br>एक धुपधुपाती हुई मोमबत्तीमुहरें और पुखराज<br>बिल्लौरी हम्मामों, अन्धी सुरंगों, खुशनुमा फानूसों, खौफनाक तहखानोंबच्चों के मुँह इत्र धुले फर्शों, चोरदरवाजों में से छीने हुए कौर<br>घुमायी जा रही हैनीलम और हीरे<br>औरतों दीवारों पर खुदे पुराने नामों की शिनाख्त के बदन से खसोटे हुए जेवर<br>चमड़े की मुहरबन्द थैलियों में भर कर<br>लिएउनमें शहंशाह को पेशेनजर किये थे के हमप्याला हमनेवाला जिगरी दोस्तों के नाम हैं !<br><br>
उनसे किले की दीवारें मजबूत की गयीं<br>उनसे बेगमात के लिए बिल्लौरी हौज बने<br>उनसे दीवानखानों के लिए फानूस ढलवाये गये<br>उनसे मरमरी फर्शों पर इत्र का छिड़काव हुआ<br>उनसे इन्साफ के घंटे के लिए ठोस सोने की जंजीर ढलवायी गयी<br>गजर बजेगा मायूस आवाज मेंऔर अब उन तमान बदनीयत अमीर उमरा के नाम<br>कत्ल सहर होते ही महल का परवाना भेजा जा रहा है<br>ताकि खुदा के सामने पेशी के वक्त<br>पाक नीयत शहंशाह के जमीर पर<br>मातमकदा खोल दिया जाएगा !कोई दाग न छूट जाए<br><br>लटके हुए काले परदे, खुली हुई पवित्र पुस्तकें !
एक धुपधुपाती हुई मोमबत्ती<br>बिल्लौरी हम्मामों, अन्धी सुरंगों, खुशनुमा फानूसों, खौफनाक तहखानों<br>लोग मगर ज्यादा मुस्तैद हैं ताजपोशी के सरंजाम मेंइत्र धुले फर्शों, चोरदरवाजों पायताने बैठे हुए लोगों का मातम में से घुमायी जा रही है<br>झुका हुआ सिरदीवारों पर खुदे पुराने नामों की शिनाख्त ताज पहनने के लिए<br>उठने का अभ्यास करना चाहता है !उनमें शहंशाह मगर बादशाह ने हाथ के हमप्याला हमनेवाला जिगरी दोस्तों के नाम इशारे से लुहार बुलवाये हैंवे ताज को पीट-पीट कर चौड़ा कर रहे हैं !<br><br>
गजर बजेगा मायूस आवाज में<br>कल सुबह जब ताज पहनने के लिए सिर एक-एक कर आएँगेतब ताज कहीं बड़ा लगेगा और सहर होते ही महल का मातमकदा खोल दिया जाएगा !<br>सिर बहुत छोटेलटके हुए काले परदे, खुली हुई पवित्र पुस्तकें !<br><br>और एक-एक कर इन सिरों से ताजऔर इन धड़ों से सिर उतार दिये जाएँगे
लोग मगर ज्यादा मुस्तैद हैं ताजपोशी के सरंजाम में<br>कल सुबह शहंशाह न होगापायताने बैठे हुए लोगों पर बाद मदफन उस पुरमजाक बादशाह का मातम में झुका हुआ सिर<br>ताज पहनने के लिए उठने का अभ्यास करना चाहता है !<br>यह आखिरी मजाक अदा होगामगर बादशाह ने हाथ के इशारे से लुहार बुलवाये हैं<br>जिसे देख करवे ताज को पीटहँसते-पीट कर चौड़ा कर रहे हैं<br><br>हँसते लोटपोट हो जाएगी वह तमाशबीन रियायाजो हँसना खिलखिलाना जाने कब का भूल चुकी है !
कल सुबह जब ताज पहनने के लिए सिर एक-एक या मेरे परवरदिगारमुझ पर रहम कर आएँगे<br>!तब ताज कहीं बड़ा लगेगा और सिर बहुत छोटे<br>बदनसीब खुसरू की आँखों में दागी गर्म सलाखों सेजियादा तकलीफेदेह है इस बेडौल असलियत को अपनी आँखों देखनाऔर एक-एक इसके बाबत कुछ भी न कर इन सिरों से ताज<br>और इन धड़ों से सिर उतार दिये जाएँगे<br><br>पाना !
कल सुबह शहंशाह न होगा<br>काश कि मैं भी अपनी निगाहें फेर सकतापर बाद मदफन उस पुरमजाक बादशाह का<br>मगर मैं क्या करूँ कि तूने मुझे निगाहें दीं कि मैं देखूँयह आखिरी मजाक अदा होगा<br>और मैं तेरे देने को झुठला नहीं पाता !जिसे देख मौत किले के आँगन में घूम रही हैऔर वे हैं कि अभी किले की दीवारें ऊँची कर<br>रहे हैंहँसते-हँसते लोटपोट हो जाएगी वह तमाशबीन रियाया<br>खाइयों के पास कँटीले झाड़ बोये जा रहे हैं जिनकी जड़ेजो हँसना खिलखिलाना जाने कब का भूल चुकी है !<br><br>कब्र में दफन नौजवानों की पसलियों में फूटेंगी
या मेरे परवरदिगार<br>मुझ पर रहम कर !<br>बदनसीब खुसरू की आँखों तूने मुझे क्यों भेज दिया इस पुराने किले में दागी गर्म सलाखों से<br>जियादा तकलीफेदेह है इस बेडौल असलियत को अपनी आँखों देखना<br>अँधेरी रात :जहाँ मैं छटपटा रहा हूँउस बेचैन चश्मदीदी पुकार की तरह जिसे एक-एक शब्द के लिएऔर इसके बाबत कुछ भी न मोहताज कर पाना दिया गया हो !<br><br>
काश कि मैं भी अपनी निगाहें फेर सकता<br>मगर मैं क्या करूँ कि तूने मुझे निगाहें दीं कि मैं देखूँ<br>और मैं तेरे देने को झुठला नहीं पाता !<br>मौत किले के आँगन में घूम रही है<br>और वे हैं कि अभी किले की दीवारें ऊँची कर रहे हैं<br>खाइयों के पास कँटीले झाड़ बोये जा रहे हैं जिनकी जड़े<br>कब्र में दफन नौजवानों की पसलियों में फूटेंगी<br><br> ओ !<br>तूने मुझे क्यों भेज दिया इस पुराने किले में इस अँधेरी रात :<br>जहाँ मैं छटपटा रहा हूँ<br>उस बेचैन चश्मदीदी पुकार की तरह जिसे एक-एक शब्द के लिए<br>मोहताज कर दिया गया हो !<br><br> खा...मो..श !<br>खबरदा...र !!</poem>
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