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Kavita Kosh से
अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है।
अभी न आएँगी नींद न तुमको, अभी न हमको सुकूँ मिलेगाअभी तो धड़केगा दिल ज़्यादाज़ियादा, अभी मुहब्बत नई नई है।
बहार का आज पहला दिन है, चलो चमन में टहल के आएँ
फ़ज़ा में खुशबू ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है।
जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना,
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है।
ज़रा सा कुदरत क़ुदरत ने क्या नवाज़ा के आके बैठे हो पहली सफ़ में
अभी क्यों उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है।
बमों की बरसात हो रही है, पुराने जांबाज़ सो रहे है हैं
ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिसकी ताक़त नई नई है।
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