भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तुम्हारा प्रेम बारिश की बूँदें है
कल सारी रात बरसता रहा आकाश
मैं एक पेड़ बन भींगता भीगता रहातुम मेरी जड़ों में घुलती रही रात भर!
देखो न तुम्हारी छुअन से
पत्ती-पत्ती,डाल-डाल,फूल-फूल
बंगाल की खाड़ी से उठती
मानसूनी हवाओं की नमी
तुम्हारे बालो को भिंगोती भिगोती
तुम्हारी आँखों में उतर आई है इस वक्त
इस वक्त तुम्हारी आँखें
346
edits