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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=मिलन यामिनी / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>सखि‍सखि, अखिल प्रकृति की प्‍यास प्यास कि हम तुम-तुम भीगें। अकस्‍मात अकस्मात यह बात हुई क्‍योंक्यों
जब हम-तुम मिल पाए,
 
तभी उठी आँधी अंबर में
 
सजल जलद घिर आए
 
यह रिमझिम संकेत गगन का
 
समझो या मत समझो,
 
सखि, भीग रहा आकाश कि हम-तुम भीगें;
 सखि‍सखि, अखिल प्रकृति की प्‍यास प्यास कि हम तुम-तुम भीगें। 
इन ठंडे-ठंडे झोंकों से
 
मैं काँपा, तुम काँपीं,
 
एक भवना बिजली बनकर
 हो हृदयों में व्‍यापीव्यापी
आज उपेक्षित हो न सकेगा
 
रसमय पवन-सँदेसा,
 
सखि, भीग रही वातास कि हम-तुम भीगें;
 सखि‍सखि, अखिल प्रकृति की प्‍यास प्यास कि हम तुम-तुम भीगें। 
मधुवन के तरुवर से मिलकर
 
भीगी लतर सलोनी,
 
साथ कुसुम की कलिका भीगी
 
कौन हुई अनहोनी,
 
भीग-भीग, पी-पीकर चातक
 का स्‍वर स्वर कातर भरी, 
सखि, भीग रही है रात कि हम-तुम भीगें;
 सखि‍सखि, अखिल प्रकृति की प्‍यास प्यास कि हम तुम-तुम भीगें। 
इस दूरी की मजबूरी पर
 
आँसू नयन गिराते,
 
आज समय तो था अधरों से
 
हम मधुरस बरसाते,
 मेरी गीली साँस तुम्‍हारीतुम्हारी
साँसों को छू आती,
 सखि, भीग रहे उच्‍छवास उच्छवास कि हम तुम भीगें; सखि‍सखि, अखिल प्रकृति की प्‍यास प्यास कि हम तुम-तुम भीगें।</poem>
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