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दुख की अपनी भाषा होती है<br />सबसे अलग और सबसे जुदा<br />
दुख<br />पागल लम्हों की पतझड़ आवाज़ें हैं<br />जिनकी क़ीमत का तख्मीना<br />उजले काग़ज़ पर<br />भद्दे काले शब्दों की<br />तेज़ी से चलती रेल के नीचे<br />सो जाता है<br />
कविताओं और ग़ज़लों में<br />
बेमानी हो जाता है !
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