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भूल जाती है सुबह,
सुबह निकलकर
और दिन दिनभर पिघलता याद में।
हिलता दीखता है
कल मिलेंगे आज खोकर कह गया दिन।
अनगिन रास्तों पर,
कौन किसका कौन किसका क्या पता?
हाँ , मगर दिन के लिए,
दिन के सहारे,
रात दिन होते दिखे हैं लापता।
एक मंजिल मंज़िल की तरह ही रह गया दिन।ढ़ल गयी ढल गई फिर शाम देखो ढह गया दिन।
दूर वह जो रेत का तट
किन्तु घुलना एक दिन कह बह गया दिन।
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