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|रचनाकार=सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
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<poem>
रंग बिरंगे पंख लगाए
तितली रानी आती है
बाग़ बगीचों की दुनिया में
रौनक नई जगाती है
फूलों की गलियों में जाकर
झूम-झूम मंडराती है
जिसे पकड़ने बच्चे दौड़े
लेकिन हाथ में आती है
चाहे कमह हो चंपा-चमेली
सब का रस पी जाती है
बागों की यह रानी बनकर
सुंदरता बढ़ाती है
फुर-फुर करते उड़ती तितली
सबके मन को भाती है
फूलों की ख़ुशबू को लपेटे
दुनिया को महकाती है॥
</poem>
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