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गंगा - 1 / एस. मनोज

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<poem>
निर्मलता का दीप जला दो
गंगा जल सबको लौटा दो

गंगा भारत की गरिमा है
गरिमा इनकी और बढ़ा दो

पावनता जिसने सिखलायी
पावनता तुम उनकी ला दो

गंगा तो जन-जन की माँ है
जाति धर्म से इन्हें हटा दो

यह मेहनतकश की गंगा है
जहर मुक्त तुम इसे बना दो

विद्यापति का लिखा हुआ पद
गंगा तट पर फिर से गा दो
</poem>
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