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कविता तुम कौन हो
आसमान पर जड़े चाँद की चापलूस
नदी के तरल तन पर तैरती उद्दंड लहर
प्रतीक्षित माँ के आँचल पर टंका
मनरंगी फूल हो या
गोधूलि के संग लिपटती
पथिक के कदमों की धूल?
चिड़ियों की चोंच में खुन्सी नीड़ निर्माण की
चिरी हुई अंतिम पत्ती
समय के सीने पर सवार
शिलालेख की सहोदर
धरम पुत्री या
कृष्ण की कर्मयोगिनी-सी
कर्ण के भेदी बाण-सी हो तुम?
कविता तुम कौन हो?
सावन की फुहारों में भीगती
दुष्यंत की नायिका हो या
सत्यवान की सती?
स्त्री की राह रोकती विशाल शिला हो या
विश्व को ज्ञान बांटती पुरातन तक्षशिला हो?
झरनों की डबडबाई आँख से अनिकेतन हो
झीलों के सूनी गोद में ढलकती
प्रिय की व्याकुल सांस में
प्रिया को बाँधती अदृश्य डोर हो या
बिरहन की आँखों में बुझी हुई भोर हो?
कविता तुम कौन हो?
संगीत की मधुर धुनों पर तैरती
रहस्यमई मरमेड-सी
चुप्पियों की नाड़ी टटोलती
सुशैन वैद्य-सी
सोहिनी के मन में महीवाल-सी
राँझे की आँखों में दमकती हीर-सी
ना जाने कौन हो जो नीले आसमान से छलकती रहती हो
नीले समंदर की सुस्त तलहटियों तक
क्या तुम शिशु की किलकारी हो?
हाँ बिलकुल सच,
तुम फ़ाग की पिचकारी हो
अविश्वास की फुनगियों पर ठहरा
एक ठोस विश्वास हो
फिर न जाने मैं क्यों पूछती हूँ अक्सर
कविता तुम कौन हो?
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