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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
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<poem>
रोज़ ही उबाकें
रोज़ ही उल्टियाँ ख़ून की
हाँफती सुबह का
रोज़ ही बैठ जाना सिर पकड़कर नाली के पास –

अख़बार !
तुम आओ कि न आओ
तुम्हारी दुर्गन्ध आ ही जाती है..!
</poem>
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