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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
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<poem>
मेरे ठाठ
मेरे आदमी होने से नहीं
बन्दर होने से हैं –
मैं आज जो भी हूँ
बिल्लियों को
आपस में लड़ाने से हूँ...!
</poem>
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मेरे ठाठ
मेरे आदमी होने से नहीं
बन्दर होने से हैं –
मैं आज जो भी हूँ
बिल्लियों को
आपस में लड़ाने से हूँ...!
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