भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तिल-तिल कर जल गया हृदय
थमना है साँस को अब...
फिर भी
राख के ढ़ेर की आख़िरी चिंगारी के मानिन्द
जीने का प्रण है अभी शेष...
मेरे कमरे की खिड़कियाँ खोल दो
परदे हटा दो...
और बाहर जाकर देखो
कि गली के नुक्कड़ पर कौन मुड़ा है..?
एक बार दे दो मुझे आज का अख़बार
परिवेश देख रहा है मुँह चन्द टिप्पणियों का...
थोड़ी देर के लिए छोड़ दो मुझे अकेला
फूट रहा है शब्दों का प्रणय...
जन्मना है एक कविता को...
जीने का प्रण है अभी शेष..!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तिल-तिल कर जल गया हृदय
थमना है साँस को अब...
फिर भी
राख के ढ़ेर की आख़िरी चिंगारी के मानिन्द
जीने का प्रण है अभी शेष...
मेरे कमरे की खिड़कियाँ खोल दो
परदे हटा दो...
और बाहर जाकर देखो
कि गली के नुक्कड़ पर कौन मुड़ा है..?
एक बार दे दो मुझे आज का अख़बार
परिवेश देख रहा है मुँह चन्द टिप्पणियों का...
थोड़ी देर के लिए छोड़ दो मुझे अकेला
फूट रहा है शब्दों का प्रणय...
जन्मना है एक कविता को...
जीने का प्रण है अभी शेष..!
</poem>