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आओ हांसां / हरिमोहन सारस्वत

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आओ
आपां गांवां

गांवते-गांवते
नाचां अर खिलखिलांवां
इत्ता हांसां
बक्खी दुखण लागै
आसला-पासला सै ताकै

पण नीं थमां
हिवड़ां री कळी-कळी
खिलणै तांई
रूं रूं
पिंघळनै तांई

आओ
हांसां
आप मतई
बिना बात
जीवां कीं दिन
थोड़ी घणी रात
हांसतां-हांसतां

आओ चेतो करां दिखाण
बातां अर अबखायां
बिच्चाळै
आपां नै खुल’र हांस्यां
कित्ता दिन हुग्या है !
</poem>
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