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राजा आएगा ! / हरिमोहन सारस्वत

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<poem>
राजा आएगा
सुंदर सजाओ नगर को
दीप पर्व की तरह
भूखे नंगो को
एक बारगी ढांप दो
बैनर्स और होर्डिंग्स के पीछे
लगा दो कारियां और पैबंद
हर कटी फटी चीज पर

पोत दो सुनहरे रंग
बदरंग दीवारों पर
लगा दो चूना
खजाने से बाल्टियां भर

धुला दो हाथ और मुंह
मूकदर्शक बने
चुनिंदा चेहरों के
बुला लो दिहाड़िए-मजदूर
नजदीकी गांव शहरों के

कि न देख पाए राजा
नगर का असली चेहरा
जहां भद्रजनों के शहर में
भूखी-नंगी कुरूपता भी बसती है
दो जून की रोटी से
जहां दारू सस्ती है

भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़े
थाने और तहसील
आदमी को निचोड़ने में लगे हैं
चापलूस कारिंदे रातभर
फाइलों का गणित जोड़ने में जगे हैं

छोड़ो इन फालतू सवालों को
लोकतंत्र के बवालों को
गौरवपथ होकर
हैलीपेड चलो
राजा के आने का वक्त हो रहा है
कोई चूक न जाए
कहीं राज रूठ न जाए !
</poem>
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