भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लगता है इन दिनों
एक पुराना पत्ता हो गया हूं
आंगन के मोगरे का

भोर की ओस
अब नहीं झांकती
मेरे फैले हुए अन्तर्मन में
वह तो थिरकती रहती है
अपनी अठखेलियों में
नये चमकते पत्तों की देह पर
अंगराग करते हुए
मुझे चिढाते हुए

हां
सर्द मौसम में उतरता पाला
अवश्य ही आतुर रहता है
गलबहियां डालने को

पीला पड़ने लगा हूं मैं
उसकी सर्द मार से

देह तो कदाचित सह लेगी
मौसम के कुछ और प्रहार

मन में उतरी
जेठ की दुपहरी का क्या करूं?

बस सिक रहा हूं
पलटी गई रोटी की तरह
जिसे उतार लिया जाना है
फूलते ही
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits