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{{KKRachna
|रचनाकार=सोनरूपा विशाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
उसको मेरा मलाल है अब भी,
चलिए कुछ तो ख़याल है अब भी।
रोज़ यादों की तह बनाता है,
उसका जीना मुहाल है अब भी।
उसने उत्तर बदल दिए हर बार,
मेरा वो ही सवाल है अब भी।
दफ़्न होकर भी साँस है बाक़ी,
कोई रिश्ता बहाल है अब भी।
उम्र भर को बिछड़ गए लेकिन,
उससे मुमकिन विसाल है अब भी।
</poem>
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उसको मेरा मलाल है अब भी,
चलिए कुछ तो ख़याल है अब भी।
रोज़ यादों की तह बनाता है,
उसका जीना मुहाल है अब भी।
उसने उत्तर बदल दिए हर बार,
मेरा वो ही सवाल है अब भी।
दफ़्न होकर भी साँस है बाक़ी,
कोई रिश्ता बहाल है अब भी।
उम्र भर को बिछड़ गए लेकिन,
उससे मुमकिन विसाल है अब भी।
</poem>