भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंसूर उस्मानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मंसूर उस्मानी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की
इस बार तो पैमाना उठाया भी नहीं था
इस बार थी रिंदों की ख़ता और तरह की
हम आँखों में आँसू नहीं लाते हैं कि हम ने
पाई है विरासत में अदा और तरह की
इस बात पे नाराज़ था साक़ी कि सर-ए-बज़्म
क्यूँ आई पियालों से सदा और तरह की
इस दौर में मफ़्हूम-ए-मोहब्बत है तिजारत
इस दौर में होती है वफ़ा और तरह की
शबनम की जगह आग की बारिश हो मगर हम
'मंसूर' न माँगेंगे दुआ और तरह की
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मंसूर उस्मानी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की
इस बार तो पैमाना उठाया भी नहीं था
इस बार थी रिंदों की ख़ता और तरह की
हम आँखों में आँसू नहीं लाते हैं कि हम ने
पाई है विरासत में अदा और तरह की
इस बात पे नाराज़ था साक़ी कि सर-ए-बज़्म
क्यूँ आई पियालों से सदा और तरह की
इस दौर में मफ़्हूम-ए-मोहब्बत है तिजारत
इस दौर में होती है वफ़ा और तरह की
शबनम की जगह आग की बारिश हो मगर हम
'मंसूर' न माँगेंगे दुआ और तरह की
</poem>