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<poem>
वो अपनी फ़त्ह का हर दम यक़ीन रखते हैं
जो अपने साथ किताबे-मुबीन रखते हैं

हमारी फ़िक्र का मेयार है जुदा सब से
हम आसमां पे ग़ज़ल की ज़मीन रखते हैं

हमारा कोई मुख़ालिफ़ नहीं है दुनिया में
हम अपना लहजा बहुत दिलनशीन रखते हैं

हमेशा रखते हैं क़ामत निगाह में अपनी
वो जी शऊर जो ज़हीं मतीन रखते हैं

रवायतें हैं बुज़ुर्गों की आज भी ज़िंदा
दफ़ीने अब भी घरों में मकीन रखते हैं

वो मौत को भी समझते हैं ज़िन्दगी 'गौहर'
जो अपनी फ़र्द अमल पर यक़ीन रखते हैं।
</poem>
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