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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''गजल-'''

'''दर्द मेरे दिल में था, और पास में तबीब था,'''
'''हो सका इलाज ना, ये मेरा नसीब था।। टेक ।।'''

खुशी के पतील सोत, आंधियों में चस रहे,
मन के माफिक थे मणे, जो वीरानों में बस रहे,
हंसने वाले हंस रहे, नजारा अजीब था।।1।।

मुश्किल से पाया उन्हें, जो बेदर्द होके खो रहे,
अश्क आंखों में नहीं, दिल ही दिल रो रहे,
आज दुश्मन हो रहे, जो बचपन में हबीब था।।2।।

हो सका मालूम ना, किसका कितना प्यार था,
पूछना समझा गुनाह, जो कमसिन का यार था,
मैं उस यार का बीमार था, और नुक्षा भी करीब था।।3।।

दिल में मेरे टीस थी, और वो बेटीस थे,
मिल सके रघुनाथ ना, जिनके वादे बीस थे,।
वे हुस्न के रहीस थे, मैं चाहत का गरीब था।।4।।
</poem>
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