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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''नारद- तेरे हित को बात आज मैं कंस बताऊं खोल।'''
'''कंस- कहो मुनी जो हित चित से मैं सुणू आपके बोल।।टेक।।'''

नारद- मेरी बात मानेगा तो, तेरा हो जायेगा कल्याण।
कंस- कभी मरूं ना दुनिया में, करदो ऐसा ज्ञान।।
नारद- जितने बेटे देवकी के, सब हो एक समान।
कंस- तार दिया कृपा करके, मेरे सिर पर था शैतान।।
नारद- सारी दुनिया कहे बणा, धरती का नक्षा गोल।
कंस- बात थारी सुन-सुन के, होगी मेरे हिये में होल।। 1।।

नारद- हौल लिकडज़ा हृदय को, तू ले बुद्धी से काम।
कंस- करूं काम अब जल्दी से, मेटूं उस बालक का नाम।।
नारद- नाम अमर दुनिया में, तेरा भोग ऐश आराम।
कंस- दया आपने करी मेट दिया, मेरा कष्ट तमाम।।
नारद- चक्कर फूलकमल की तरियां, होणा चाहिये तोल।
कंस- मेरे मन में जंची आपकी, राय बड़ी अनमोल।। 2।।

नारद- है अनमोल जिन्दगी जंग में, जीते जी का ठाठ।
कंस- मेरे मारने वाले बैरी, पैदा होंगे आठ।।
नारद- पैदा होते ही कंस तारदे, उन्हें मौत के घाट।
कंस- दूं चौड़े में फोड़ मुनी जी, भरा भरम का मांट।।
नारद- मांट के भीतर तेरे करम का, जहर दिया है घोल।
कंस- जहर का कहर मिटा दिया तुमने, खोल ढोल की पोल।। 3।।

नारद- पोल पाप की पटी, बताया अब आगे का हाल।
कंस- हाल सभी यह कह दिया, काटदूं सब कर्मों का जाल।।
नारद- जाल काट जल्दी से मारो, करो जगत का ख्याल।
कंस- ख्याल राख रघुनाथ गाने में, पूरा कर सुर ताल।।
नारद- ताल सही लगने से जग में, मचै राग की रौल।
कंस- पूरा करना चाहिये मानस ने, अपना अपना कौल।। 4।।
</poem>
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