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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''दोहा-'''
चिट्ठी देके न्यूं कही, तेरा होगा घणा सवाब।
इस चिट्ठी का लिख दिये, कुंवारी अभी जवाब।।

'''छन्द / सवैया-'''
पहले तो चिट्ठी खोल के, चुपके-चुपके बांच ली।
फेर प्रीत अपने पति की, कुंवारी ने दिल में जाँच ली।।
कलम और कागज लिया, और काली रोशनाई लई।
श्रीदेव स्वामी पति को, हरि ओ३म् नमस्ते लिख दई।।

'''तर्ज -''' फिल्मी (अफसाना लिख रही हूं...)

'''खत खुश होकर लिखती हूं, न्यूं पिया आपको।'''
'''दुनियां में मैंने एकदम, बर लिया आपको ।।टेक।।'''

नमस्कार सर्वाधार, लगादे पार सबै सुख धाम।
जरा ठहर मिटेगा कहर ,चलेंगे उसी लहर में काम।।
मेरे राम आज तकती है, ये सिया आपको।।1।।

दर्शन की अभिलाषी दासी, प्यासी है सब टैम।
धरम करम पर शरम दिखाऊं, पतिव्रता के नैम।।
थारा बहुत प्रेम रखती, दिल दिया आपको।।2।।

हर की माया भेद न पाया, कदी छाया कदी धूप।
होणी की चाल कंगाल, करे बेहाल करे कभी भूप।।
जो मेरी रूप शक्ति है, पिया किया आपको।।3।।

भरतार नार तेरी ताबेदार, और सदा रहूँगी साथ।
छबि छावे आनन्द पावे, जब गावे रघुनाथ।।
ना झूठ बात बकती है, मेरा जिया आपको।।4।।
</poem>
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