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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''वार्ता -''' द्रोपदी की बातें सुनकर दुर्योधन क्रोधित हो गया। उसकी दशा देख अर्जुन द्रोपदी को चुप करता हुआ क्या कहता है।

'''तर्ज -''' मेरा तन डोले मेरा मन डोले

'''तेरा लगे जेठ, चरणों में लेट, तू हो चुपकी मत बोल।'''
'''तेरी हांसी करनी ठीक नहीं।। टेक।।'''

समझदार माणस को जंग में, इज्जत से डरना चहिये।
सारे काम सहज में होजां ,सतगुरु की शरना चहिये।।
टोटा नफा कर्म का जग में, दुख में ना मरना चहिये।
बैरी भी जो घर आवे, पूरा आदर करना चहिये।
बैर मेट, ले पकड़ पेट, ये भेद बताऊं खोल,
मेरी इतनी अक्ल बरीक नहीं।। 1।।

बीच सभा में नंगी करके, चाहे तू नचाई है।
जुवा खेल चाहे राज जीत लिया, राजा ना अन्याई है।।
फेर भी तेरा जेठ रहेगा, बड़ा हमारा भाई है।
पिछली बात थूक दे मन से, राड़ तो मिटी मिटाई है।।
मिलें फेट, ले बांध ढेट, तू मत हो डावां डोल,
कोई होता गैर शरीक नहीं।। 2।।

ये आज राज का देवा है, पर कोयना बणता लेवा है।
बात समय की होती है, आज जहर दिखे मेवा है।।
द्रोपदी तनै सभी जाणे हैं, कसर नहीं कुछ खेवा में।
जी के जख्म दाब ले जी में, कसर करे मत सेवा में।।
फल फूल ठेट, दे अभी भेट, न्यूं मचैगी देश में रोल,
होय प्यार समावे सीक नहीं।। 3।।

समय पड़े पै प्यारा मित्र, सब तरिया अजमाया जा।
जैसा जिसका काम जगत में, भला और बुरा बताया जा।।
भाई बन्धु वक्त के ऊपर, रूंसा हुआ मनाया जा।
रघुनाथ कथा की कविताई में, नाम तुम्हारा गाया जा।।
खुला गेट, है सही रेट, रट राग नाम अनमोल,
कुछ रहे बात में फीक नहीं।। 4।।
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