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झील / रामधारी सिंह "दिनकर"

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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
{{KKCatKavita}}}}<poem>मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
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