Changes

{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार;<br>पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार|<br>संसार।भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;<br>बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम|<br>लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?<br>यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ|<br>व्यर्थ।यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;<br>यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार |<br>श्रृंगार।छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इसका ज्ञान;<br>यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान|अपमान।<br/poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,111
edits