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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
मैं पर्वतारोही हूँ।
शिखर अभी दूर है।
और मेरी साँस फूलनें लगी है।
मुड़ कर देखता हूँ
कि मैनें जो निशान बनाये थे,
वे हैं या नहीं।
मैंने जो बीज गिराये थे,
उनका क्या हुआ?
मैं पर्वतारोही हूँ।<br>किसान बीजों को मिट्टी में गाड़ करशिखर अभी दूर है।<br>और मेरी साँस फूलनें लगी है।<br><br>घर जा कर सुख से सोता है,
मुड़ कर देखता हूँ<br>इस आशा मेंकि मैनें जो निशान बनाये थे,<br>वे उगेंगेवे हैं या नहीं।<br>और पौधे लहरायेंगे ।मैंने जो बीज गिराये थेउनमें जब दानें भरेंगे,<br>उनका क्या हुआ?<br><br>पक्षी उत्सव मनानें को आयेंगे।
किसान बीजों लेकिन कवि की किस्मतइतनी अच्छी नहीं होती।वह अपनें भविष्य को मिट्टी में गाड़ कर<br>घर जा कर सुख से सोता है,<br><br>आप नहीं पहचानता।
इस आशा में<br>कि वे उगेंगे<br>और पौधे लहरायेंगे ।<br>उनमें जब दानें भरेंगे,<br>पक्षी उत्सव मनानें को आयेंगे।<br><br> लेकिन कवि की किस्मत<br>इतनी अच्छी नहीं होती।<br>वह अपनें भविष्य को<br>आप नहीं पहचानता।<br><br> हृदय के दानें तो उसनें<br>बिखेर दिये हैं,<br>मगर फसल उगेगी या नहीं<br>यह रहस्य वह नहीं जानता ।<br/poem>
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