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<poem>
मशवरा है ये बेहतरी के लिए
हम बिछड़ जाते हैं अभी के लिए

प्यास ले जाती है नदी की तरफ
कोई जाता नहीं नदी के लिए

ज़िन्दगी की मैं कर रहा था क्लास
बस रजिस्टर में हाज़िरी के लिए

आप दीवार कह रहे हैं जिसे
रास्ता है वो छिपकली के लिए

क़ैस ने मेरी पैरवी की है
दश्तो सहरा में नौकरी के लिए

नील से पहले चाँद पर मौजूद
एक बुढ़िया थी मुख़बिरी के लिए
</poem>
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