भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मालूम था मुझको कि हर धारा नदी होती नहीं
हर वृक्ष की हर शाधन्खयवाद शाख फूलों से लदी होती नहीं फिर भी लगा जब तक कदम क़दम आगे बढ़ाऊँगा नहीं,
कैसे कटेगा रास्ता यदि गुनगुनाऊँगा नहीं,
यह सोचकर सारा सफ़र, मैं इस कदर क़दर धीरे चला
लेकिन तुम्हारे साथ फिर रफ़्तार दूनी हो गई!
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,129
edits