भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय सहाब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय सहाब
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए
फिर वो मा'सूम सा बचपन का ज़माना आए

काश लौटें मिरे पापा भी खिलौने ले कर
काश फिर से मिरे हाथों में ख़ज़ाना आए

काश दुनिया की भी फ़ितरत हो मिरी माँ जैसी
जब मैं बिन बात के रूठूँ तो मनाना आए

हम को क़ुदरत ही सिखा देती है कितनी बातें
काश उस्तादों को क़ुदरत सा पढ़ाना आए

आज बचपन कहीं बस्तों में ही उलझा है 'सहाब'
फिर वो तितली को पकड़ना, वो उड़ाना आए
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,988
edits