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05:24, 5 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय सहाब
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<poem>
सब है फ़ानी यहाँ संसार में किसका क्या है
फ़िक्र फिर भी है तुझे अपना पराया क्या है ?
ज़िन्दगी खुद पे तू इतना भी गुमां मत करना
चन्द साँसों के सिवा तेरा असासा क्या है ?
आपका पहला ही अंदाज़ बता देता है
आपको आपके वालिद ने सिखाया क्या है ?
फिर से इक और लड़ाई के बहाने के सिवा
तुम बता दो कि किसी जंग से मिलता क्या है?
उम्र भर कुछ न किया जिसकी तमन्ना के सिवा
उसने पूछा भी नहीं मेरी तमन्ना क्या है?
इश्क़ इक ऐसा जुआ है जहाँ सब कुछ खोकर
आप ये जान भी पाते नहीं खोया क्या है?
कुछ ग़रीबों की गली में भी दिये जल जायें
इस से बेहतर भी दीवाली का उजाला क्या है ?
वही भूके ,वही आहें वही आँसू हैं सहाब
शह्र का नाम बदल जाने से बदला क्या है ?
</poem>