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{{KKRachna
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
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जलपाइगुडी के स्टेशन पे तुमने थामा था हाथ मेरा
राइन नदी में बतखों ने फिर डुब-डुब डुबकी खाई थी
 
सिंगापुर के सूरज को एक हाथ बढा कर ढाँपा था
आल्पस् की अलसाई सुबह फिर थोड़ा सा गरमाई थी।
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