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Kavita Kosh से
मेरे हाथों की लकीरें सब उसी के नाम थीं
बस वही इक इक शख़्स जो ,था ही नहीं तक़दीर में
ख़्वाब सारे , ख़्वाब ही थे ,ख़्वाब बन कर रह गए