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<poem>
हमारी बेबसी बोली है कुछ-कुछ
ये दुनिया तब कहीं समझी है कुछ-कुछ

जो सुनता है दिमाग़-ओ-दिल से यारो!
उसी से ज़िंदगी कहती है कुछ-कुछ

न उलझाओ फ़रेबों में हमें तुम
के दुनिया हमने भी देखी है कुछ-कुछ

कभी फ़ुर्सत हो तो सुन जाओ तुम भी
हमारी ख़ामुशी कहती है कुछ-कुछ

हमें बिछड़े ज़माना हो गया है
अभी भी मुझ में तू बाक़ी है कुछ-कुछ

उलझती है ये दिल वालों से अक्सर
ये दुनिया सरफिरी लगती है कुछ-कुछ
</poem>
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