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Kavita Kosh से
कारवां छोड़कर अपने घर जाइए
झूठ की चाशनी में पगी ज़िंदगी
आजकल स्वाद में कुछ खटाने लगी
सत्य सुनने की आदी नहीं है हवा
कह दिया इसलिए लड़खड़ाने लगी
सत्य ऐसा कहो, जो न हो निर्वसन
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