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<poem>
मेरी प्रार्थना
नितान्त निजी, अत्यन्त गोपनीय
व्याकुल, दुःखमय
एक उत्कट अनुनय
एक सम्मोहक विनती
पुनर्जीवित करने के लिए मेरी इच्छाओं, आकांक्षाओं और लालसाओं को
सिर्फ मेरी, केवल मेरी ही ।

रोजमर्रा के कामों के बीच
दोपहर का चल चल कर शाम होते हुए
मन्दिरों के उँचे द्वारोँ पे
रसोई और सोने के कमरे के बीचोबीच
किसी भी जगह, हर जगह
पुनर्जीवित कर देती है मेरी प्रार्थना मुझे
पूरी कर देती है मेरी अभिलाषाओं को ।

कितनी सहजता से प्राप्त हो पत्थर सा मौन तुम
कभी न बोलने की नियति लेकर
मुझ को और, और सभी को
देते हुए सम्मति का भ्रम
नारियल, कपडा और
जीवन कहे जानेवाली दीये की एक चमकती हुई बाती के बदले में ।
</poem>
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