भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<span class="mantra_translation">
शिवि पुत्र सात्विक सत्यकाम ने पूछा ऋषि पिप्लाद से,<br>भगवन! मनुष्यों में जो कोई ॐ को आह्लाद से।<br>पर्यंत मृत्यु ध्यान चिंतन करते वे किस लोक को,<br>
करते विजित , यह प्रश्न करिए शांत मेरे विवेक को॥ [ १ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
हे सत्यकाम ! सुनो प्रिये जो निश्चय यह ओंकार है,<br>परब्रह्म यह ही अपर ब्रह्म भी, लक्ष्य भूत प्रकार है।<br>इस एक ही अवलम्ब के चिंतन से ब्रह्म महेश को,<br>
अनुसार भाव के पाते ब्रह्म को, परम प्रभु परमेश को॥ [ २ ]<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
ओंकार की मात्रा प्रथम, ऋग्वेद रूपा है यथा,<br>तप श्रद्धा व् संयम से जिसकी, ऋद्धि मान की है प्रथा।<br>ओंकार का साधक यदि ऐश्वर्य में आसक्त है,<br>
हो प्रीति के अनुरूप प्राप्ति जिसमें मन अनुरक्त है॥ [ ३ ]<br><br>
</span>